Kavita Jha

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मंदिर का रहस्य लेखनी कहानी -12-Dec-2021

मंदिर का रहस्य

भाग-1

काँधे पर बस्ता लाधे, डरते डरते कृतिका बस में चढ़ तो
गई लेकिन आज भी वो स्कूल जाने से कतरा रही थी। उसके पापा ने उसे कई बार समझाया, किसी भी समस्या का समाधान उससे भागना नहीं बल्कि उससे लड़ना है।

कृतिका ग्यारहवीं में पढ़ने वाली वाणिज्य की विद्यार्थी है, उसकी शुरु से गणित में बहुत रुचि थी। उसके दसवीं  में 89% मार्क्स आऐ थे जिसमें गणित में ही सबसे अधिक थे।
वो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली एक साधारण से नैन नक्श, रंग साँवला, कद ठीक ठाक, दुबली पतली सी लड़की थी।

उसकी सबसे बड़ी कमी जिस कारण वो हीन भावना की शिकार होने से ज्यादा अपनी गणित की अध्यापिका की नफरत का शिकार हो रही थी, वो था उसका बिहारी होना।

भीड़ भरी बस में कृतिका भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि काश!  आज सुषमा मैम की डाँट से बच जाऊँ। जैसे ही बस डाबड़ी मोड़ पहुँची उसने झुककर सीसे से मंदिर की तरफ देखकर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए, तभी पीछे से आवाज आई,
"ओऐ डंडा पकड़ ले मंदिर से भगवान निकल कर तुझे बचाने नहीं आने वाले।"
ये आवाज थी उसकी सहेली अनन्या की, जो एक स्टाॅप पहले बस में चढ़ी थी। दोनों पक्की सहेली बन गई थी कुछ ही दिनों में, स्कूल अलग था लेकिन टयुशन दोनों एक साथ पढ़ती थी।

कृतिका बिहारी और  अनन्या बंगाली परिवार से, तो जल्द ही दोनों के परिवार वाले भी एक दूसरे के दोस्त बन गए। खान-पान  और रहन-सहन भी एक जैसा था, बस अंतर था तो इतना ही कि अनन्या की मम्मी सरकारी हाॅस्पिटल में नर्स थी और कृतिका भी मम्मी हाऊस वाईफ।

अनन्या और कृतिका की खूब पटती, दोनों के रंग रूप में जमीन आसमान का अंतर था पर स्वभाव बिलकुल एक जैसा। कृतिका के बिल्कुल विपरीत दिखती थी अनन्या, रंग गोरा, तीखे नैन नक्श, छोटे छोटे बालों में भी गजब की खूबसूरत दिखती थी वो।
पहली बार जब कृतिका उससे मिली थी तो उसकी एक झलक देख कर ही लगा जैसे वो उर्मीला मांडोटकर सुप्रसिद्घ बॉलीवुड अभिनेत्री से मिल रही है।

बस के झटके से जैसे ही कृतिका का बैलेंस बिगड़ा झट से अनन्या ने उसे थाम लिया। साथ वाली सीट पर बैठी आँटी भी खड़ी हो गई और  बोली, "बैठो तुम दोनों, मेरा स्टाॅपेज़ भी आने वाला है।"
दोनों ने चैन की साँस ली, आँटी के उठते ही उस सीट पर बैठते ही अनन्या ने कृतिका से पूछा, " क्या हुआ यार! क्या मन्नत माँगती रहती है तूँ इस जगह, ये फालतू की जगह है जो मंदिर जैसी दिखती है, पर ये किसी भगवान का मंदिर नहीं है।
यहाँ सब उल्टे पुलटे काम होते हैं। "

कृतिका बोली, "नहीं यार! मैं नहीं मानती इस बात को। मेरी प्रार्थना जरूर सुनेंगे इस मंदिर में बैठे भगवान। फिर देखना सुषमा मैम कुछ नहीं बिगाड़ पाऐगी मेरा।"

अनन्या अपना सिर पकड़ बैठी और  बोली,  " फिर कहा उस टीचर ने कुछ तुझे, क्यों वो तेरे पीछे पड़ी है। तूँ अपना स्कूल ही चेंज करवा ले और  आजा मेरे स्कूल में। "

कृतिका अपना स्कूल छोड़ने वाली नहीं थी, बड़ी मुश्किल से इस स्कूल में उसे दाखिला मिला था। उसके सपनों को उड़ान देने की नींव यहीं से मिलेगी वो जानती थी इस बात को। जब छठी कक्षा में  दाखिला उसे इसी शर्त पर मिला कि वो संस्कृत की जगह पंजाबी विषय लेगी। जब उसके माता पिता को अपनी भाषा में बात करते सुना तो टीचर ने पूछा,  तुम बिहारी हो।
बड़े गर्व से बोली थी कृतिका हाँ,  मेरे माता पिता का जन्म बिहार में  हुआ और मैं दिल्ली की हूँ। अभी तक बिहार गई तो नहीं पर जाऊँगी जरूर एक दिन।
उसके ये शब्द दो टीचर बड़े ध्यान से सुन रहे थे, प्रिंसिपल

मैम ने तो साफ इंकार ही कर दिया था, कि एडमिशन एरिया वाईज़ होता है। तो तुम जहाँ रहती है वहाँ पालम गाँव के ही स्कूल में  पढ़ो।
वहीं बैठी एस कुमार कृतिका की आँखों के सपनों को देख रही थी, प्रिंसिपल के पास जाकर उन्हें मनाया। कृतिका को कोई परेशानी नहीं थी संस्कृत पढ़े या पंजाबी दोनों ही विषय उसके लिए नऐ थे।

छठी से दसवीं तक बहुत अच्छा समय गुजरा कृतिका का अपने स्कूल में। ग्यारहवीं में विषय चुनने में  भी एस कुमार मैम ने ही उसकी मदद की। पर ना जाने क्यों मैथ्स टीचर सुषमा मैम को कृतिका के मैथ्स लेकर पढ़ने में आपत्ति थी, वो कहती," मैथ्स तुमसे संभलने वाला नहीं । क्या करोगी मैथ्स पढ़कर तुमको तो बिहार में ही रहना है ना, तेरे माँ बाप गाँव में शादी करवा देंगे बारहवीं पास करते ही, फिर चुल्हा ही तो फूंकना है तुम्हें, और गोबर के कंडे बनाओगी। तुम्हें काॅमर्स लेकर पढ़ने की जरूरत क्या है, आर्टस लेकर पढ़ो या फिर जाओ हिंदी लेकर पढ़ो।"

हिन्दी तो उसके रग रग में था, पिता हिन्दी के लेखक। घर में हमेशा हिंदी के मैगजीन और किताबों का अंबार लगा रहता। पर गणित में तो उसकी जान बसती थी।

कृतिका बहुत दुखी हो जाती सुषमा मैम की बातें सुनकर।
शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता जब उसे मैथ्स क्लास में पनिश्मेंट ना मिलती, कारण क्या होता वो तो खुद नहीं समझ पाती।
दसवीं तक हिन्दी माध्यम से पढ़ने के बाद ग्यारहवीं में अंग्रेजी माध्यम से मुश्किल तो हो रही थी उसे पढ़ाई में, पर वो मेहनत करने को तैयार थी।

पिछले महीने ही ये डाबड़ी मोड़ पर मंदिर बनकर तैयार हुआ था। बस तब से रोज कृतिका दूर से ही मंदिर से गुजरते वक्त दोनों हाथ जोड़ लेती। अकसर सोचती किसी दिन इस मंदिर के अंदर जरूर जाऊँगी।
अनन्या उससे कहती..

भगवान तभी देते हैं साथ
जब तुम करते हो अपना काम
तुम्हारे कर्मों का फल मिलता है तुम्हें
भाग्य देता तभी साथ
जब करते तुम पूरी मेहनत
मंदिर में दीप जलाने से पहले
मन में ज्ञान का दीप जलाओ

दोनों सहेलियां बाते करते हुऐ भूल ही गई कि कृतिका का स्टाॅप तो पीछे ही छूट गया और अब अनन्या का स्कूल भी आ गया। ओह! ये लो जी कृति आज फिर लेट हो जाएगी तूँ, इसलिए कहती हूँ मेरे ही स्कूल में एडमिशन करवा ले।

नहीं पलायन तो नहीं करूंगी मै क्योंकि पापा कहते हैं..

घबराने से नहीं चलेगा काम
मुँह फेरने या पलायन से
नहीं होगा समस्या समाधान
फूल ही नहीं बिछे होंगे राहों में...
काँटो पर भी चलना पड़ेगा..

अच्छा बाबा! धन्य है तूँ,  जा चल काँटों पर और  खाती रह डाँट अपनी सुषमा मैम की। चल जल्दी से रोड क्रॉस कर और रिक्शा ही कर ले।
क्रमशः

लेखिका कविता झा'काव्या कवि'

सर्वाधिकार सुरक्षित©®




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12 Comments

madhura

02-Feb-2025 09:58 AM

v nice

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shweta soni

16-Jul-2022 11:07 PM

Bahot badiya

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Shrishti pandey

20-Jan-2022 08:44 PM

Nice

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